Wednesday, February 29, 2012

pyar

प्यार


सूखे बगीचे के सामने

अकेला बैठा था मैअचानक एक बूँद आ गिरी
वह ढुलककर आयी मेरे पास
कहती है चुपचाप
मै तुम्हारे बगीचे को जिलाने आयी हुँ
फूलो
से सजाने आयी हूँ


सुगंध फैलाने आयी हूँ ।

अरे तू ! मुझे विश्वास् नही आया । वह मुसकुराती फिर
कभी कभी एक किरण से भी होती है रोषनी
कभी कभी गीत बन जाती है इक वाणी
कभी कभी एक शबद से भी होती है कहानी
कभी कभी एक बूँद से भी होता है पानी
-इस दुनिया मे अकेला कौन है यार
इस दुनियाका एक ही बंधन है प्यार्।

No comments:

Post a Comment